नई दिल्ली. दहेज उत्पीड़न के मामलों में अब सुलह-समझौते की इजाजत मिल सकती है। वह भी कोर्ट की सहमति से और मुकदमा शुरू होने से पहले। केंद्र सरकार ने आईपीसी की धारा 498ए में संशोधन की तैयारी की है।
गृह मंत्रालय ने कैबिनेट को प्रस्ताव भेजा है। मसौदे में दहेज उत्पीड़न या कानून के दुरुपयोग का मामला सिद्ध होने पर जुर्माना बढ़ाकर 15 हजार रु. करने प्रावधान है। अभी यह हजार रु. है। बदलाव हुए तो उन लोगों को राहत मिलेगी, जिन्हें दहेज प्रताड़ना के झूठे आरोप लगाकर परेशान किया जाता है।
पुरुषों और उनके निकट संबंधियों को सताने की घटनाओं के मद्देनजर सरकार कानून बदल रही है। विधि आयोग और जस्टिस मलिमथ समिति ने भी ऐसी ही सिफारिश की है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी 2010 में कहा था कि यह कानून असंतुष्ट महिलाओं का हथियार बन गया है। कानून के प्रावधानों पर संसद में गंभीरता से चर्चा होनी चाहिए। पिछले साल केंद्र ने राज्य सरकारों से कहा था कि तत्काल गिरफ्तारी से बचा जाए। आरोपों पर संतुष्ट होने के बाद ही गिरफ्तारी हो।
यह है मौजूदा प्रावधान
आईपीसी की धारा 498ए के तहत केस दर्ज होते ही गिरफ्तारी का प्रावधान है। शिकायत में जिनका नाम लिखा जाता है, उन्हें कोर्ट में निर्दोष साबित होने तक दोषी माना जाता है। सुलह-समझौते की गुंजाइश ही नहीं है। वैवाहिक समस्या आने पर भी दहेज उत्पीड़न के झूठे केस दर्ज हो रहे हैं।
कानून में यह बदलाव किया जाएगा
केस पर सुनवाई से पहले सुलह-समझौते की गुंजाइश मिलेगी। इससे दुरुपयोग में कमी आएगी। सुलह-सफाई और अदालत से बाहर समझौते का मौका मिलेगा। कोर्ट की इजाजत के प्रावधान से महिला को ससुराल वाले समझौते के लिए बाध्य नहीं कर सकेंगे।
मौजूदा कानून जारी रहना चाहिए
यह कानून परेशान महिलाओं को राहत और सुरक्षा देता है। इसे जारी रखा जाना चाहिए। महिला विरोधी हिंसा मानवाधिकार का उल्लंघन है। इस पर कोई समझौता नहीं हो सकता। मैं सरकार के कदम से असहमत हूं। इसका विरोध करूंगी।’-इंदिरा जयसिंह, सुप्रीम कोर्ट की वकील
गृह मंत्रालय ने कैबिनेट को प्रस्ताव भेजा है। मसौदे में दहेज उत्पीड़न या कानून के दुरुपयोग का मामला सिद्ध होने पर जुर्माना बढ़ाकर 15 हजार रु. करने प्रावधान है। अभी यह हजार रु. है। बदलाव हुए तो उन लोगों को राहत मिलेगी, जिन्हें दहेज प्रताड़ना के झूठे आरोप लगाकर परेशान किया जाता है।
पुरुषों और उनके निकट संबंधियों को सताने की घटनाओं के मद्देनजर सरकार कानून बदल रही है। विधि आयोग और जस्टिस मलिमथ समिति ने भी ऐसी ही सिफारिश की है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी 2010 में कहा था कि यह कानून असंतुष्ट महिलाओं का हथियार बन गया है। कानून के प्रावधानों पर संसद में गंभीरता से चर्चा होनी चाहिए। पिछले साल केंद्र ने राज्य सरकारों से कहा था कि तत्काल गिरफ्तारी से बचा जाए। आरोपों पर संतुष्ट होने के बाद ही गिरफ्तारी हो।
यह है मौजूदा प्रावधान
आईपीसी की धारा 498ए के तहत केस दर्ज होते ही गिरफ्तारी का प्रावधान है। शिकायत में जिनका नाम लिखा जाता है, उन्हें कोर्ट में निर्दोष साबित होने तक दोषी माना जाता है। सुलह-समझौते की गुंजाइश ही नहीं है। वैवाहिक समस्या आने पर भी दहेज उत्पीड़न के झूठे केस दर्ज हो रहे हैं।
कानून में यह बदलाव किया जाएगा
केस पर सुनवाई से पहले सुलह-समझौते की गुंजाइश मिलेगी। इससे दुरुपयोग में कमी आएगी। सुलह-सफाई और अदालत से बाहर समझौते का मौका मिलेगा। कोर्ट की इजाजत के प्रावधान से महिला को ससुराल वाले समझौते के लिए बाध्य नहीं कर सकेंगे।
मौजूदा कानून जारी रहना चाहिए
यह कानून परेशान महिलाओं को राहत और सुरक्षा देता है। इसे जारी रखा जाना चाहिए। महिला विरोधी हिंसा मानवाधिकार का उल्लंघन है। इस पर कोई समझौता नहीं हो सकता। मैं सरकार के कदम से असहमत हूं। इसका विरोध करूंगी।’-इंदिरा जयसिंह, सुप्रीम कोर्ट की वकील
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